Monday, March 3, 2014

सोचता हूँ ऐसे ही चुप रहूं
सदियों तक
तूफान के आने से पहले 
सन्नाटे की तरह 

हम सभी तो चुप हो जाते हैं 
बिना कुछ बोले
शांत हो जाते हैं 
नदी की तरह 

हमारी चुप्पी
सोचने पर मजबूर कर देती है
खुद को भी
पहेली की तरह

खो जाऊं
मै भी इस भीड़ में
बादलों के पीछे
छिपे सूरज की तरह

चलो अच्छा हुआ जो टूट गया
इक अधूरा ख्वाब ही तो था
जो टूट गया
सीसे की तरह

#देव

Monday, October 28, 2013

.......

हर शाम कुछ टूटने सा लगता है 
भीतर ही भीतर 
बिना किसी आवाज के
डूबते सूरज के साथ 
बदलते मौसम के साथ
और कुछ नहीं कर पता इन्सान 

............देव

Monday, September 30, 2013

तेरी खामोशी भी न एक दिन तुफ़ान ला देगी

Wednesday, September 25, 2013

सुना है बहुत कुछ जानते हो मेरे बारे में
भला कैसे जानते हो
जबकि मै खुद जानता ही नही
की मै हूं क्या.....
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फिर गूञ्ज रही है
मेरे कानो मे वो ध्वनि 
सम्वेद्ना से भरे दो शब्द
जिससे न कह पाया कभी
वो अब भी आता है
चौखट पर मेरे 
धीरे से होती है आहट
और वो धीरे से होने वाली आहट
गूञ्जती है कई दिनो तक कानो मे
निरन्तर बिना किसी अवरोध के
और मै खो जाता हु उसी मे
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-------------#देव

Tuesday, September 10, 2013

यहां दाढ़ी के नकाब में
वासना के पुजारी घूमते 
रहते हैं,
बचना चाहती है हर लड़की
इन बाबाओं से
जो खुद को भगवान का दर्जा दिलवाते हैं
और फिर अपना असली चेहरा दिखाते हैं
नोच देना चाहते हैं पंख
उड़ना सीखती लड़कियो के
और विरोध करने पर
औरतो को सामने खड़ा करके
उनके ओट में छिप जाते हैं,
दूसरो को सिखाते है
ब्रह्मचर्य का पाठ
और खुद वासना में लिप्त
पाए जाते हैं


----------------#देव

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जाकर भी नहीं जा सकता 
आकर भी नहीं आ सकता 
ढूंढता है कुछ पर पा नहीं सकता 
ये मन का भ्रम या है कुछ और 
जो कहना चाहता हूँ 
तुमसे कह नहीं सकता 

----------------#देव